सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।1।।
आशासु राशीभवदंगवल्ली –
भासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम् ।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं
वन्देSरविन्दासनसुन्दरि त्वाम्।।2।।
शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं क्रियात्।।3।।
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम्।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना:।।4।।
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्न: सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या।।5।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।6।।
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरण्चिहरीशवन्द्ये।
कीर्तिप्रदेSखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्।।7।।
श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे
श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे ।
उद्यन्मनोज्ञसितपंकजमंजुलास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्।।8।।
मातस्त्वदीयपदपंकजभक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण्
भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन ।।9।।
मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये
मात: सदैव कुरु वासमुदारभावे।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रलाभि:
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्।।10।।
ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेश:
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावै:।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
न स्यु: कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षा:।।11।।
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति:।
एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति।।12।।
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेदवेदान्तवेदांगविद्यास्थानेभ्य एव च।।13।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोSस्तु ते।।14।।
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि।।15।।
||इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्||
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